Writing confusions
लम्हें तल्ख़ थे,
जिंदगी के कतरे तल्ख़ थे,
पलटे जब चौराहे पर,
सारे रास्ते तल्ख़ थे,
क़दम क़दम के फासले,
मीलों का सफ़र थे,
जिंदगी के तालुकात,
हमसे तल्ख़ थे,
सुर्ख गुलाब से खिलते थे जो जज़्बात,
अब जज़्बातों के अंदाज़ तल्ख़ थे,
अलहदा कहानी थी,
शहर के हर मोड़ की,
उन मोड़ के मिजाज़ तल्ख़ थे,
दरखतों पर लटकती,
पतंगों के मांजे,
अंगुलियों की ज़ख्म
और पांव की चोटें,
मोजें से जूतें तल्ख़ थे
गुज़र रही थी जिंदगी,
जिंदगी के नाम पर,
मौत की आहट हुई,
और जिंदगी के मायने तल्ख़ थे।
कतरा सी जिंदगी ,
सारे कतरे तल्ख़ थे।
Image courtesy- the.inspired.traveller
Most welcome
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मुझे बहुत पसंद आई आपकी पंक्तियां
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Bahut bahut shukriya
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लाजवाब लिखती ह जी आप
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Thank you!
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कितनी अच्छी उर्दू में पकड़ है जी आपकी
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ऐसा नहीं है, पर फिर भी शुक्रिया :)
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