Writing confusions
यूँ ही अरमान निकला…..
आज हवाओ में, तैरकर,
उड जाऊ परिंदों सा, पंख फैला कर,
यूँ ही अरमान निकला….
पार कर जाऊ बन्दिशे सारी,
सुनूं न किसी की,
उड़ान भर लूँ बस.
यूँ ही अरमान निकला…..
कुछ और भी अरमान होंगे ,
तैरते हुये, हवाओ में,
कोई तो मेरे लिए भी पंख खोलएगा,
आज परों को परों में भर लूँ,
ये सदा पंख मेरे इकहरे रंग वाले,
उन्हें रंगीन पंखो से जोड़ दूँ,
मैं भी उड़ान भर लूं,
यूँ ही अरमान निकला…….
यूँ ही अरमान निकला,
सांझ जेसा है घोसला मेरा,
आज सुनहरी धूप का रंग कर दूँ,
गुनगुनाने लगे घोंसला मेरा ,
इन किरनो की गरमाहट से,
सूरज की आँखोंमें देखूं,
एक किरण संग कर लूं,
यूँ ही अरमान निकला……..
छोटे हैं पंख मेरे,
अरमान है सारे आसमान का,
नापना है आकाश पूरा,
चलो एक सांस भर लूं,
ये ही अरमान निकला,
एक उड़ान भर लूं…………..
यूँ ही अरमान निकला…….